Thursday, March 6, 2014

सर्दिओं की एक उजली सुबह

आज जब वर्षो बाद अँधेरे को उजाले में लिप्त होते देखा तो सुबह के  अद्धभूत  सौंदर्य को   अनुभव किया ।
सर्दिओं की  वो हड्डीओ को कड़कड़ाने  वाली सुबह,वह मंत्रमुग्ध करने वाली प्रकृति की  प्यारी अठखेलियाँ आज जैसे पहली बार देखी हो । आज कोई सबसे सुन्दर वस्तु के बारे में पूछे तो मैं कहूँगी ठंडीयो  कि सुबह में हरे भरे खेत खलिहान ,कोहरे में मासूमियत से  धुप  का  इंतज़ार करते हुए वो पेड़ और  उनकी मनमोहकता । कितनी सौम्यता है इस दृश्य में ,कितनी शीतलता है इस आने वाली नए दिन  में ,कितनी ताज़गी है इस हवा में । एक अलग  सी ऊर्जा देता है यह  वातावरण । शांति है पर फिर भी प्रकृति की  यह  मौनता अकेला प्रतीत नहीं होने देती बस सुबह  के साथ आने वाली रौशनी की  उम्मीद  देती है ,इस भोर के आगमन  के साथ सुंदरता के रंग  बिखेरती जाती  है और हृदय को हर्षो उल्लास से भर  देती है  । कही खाली मैदान है तो कही फसले जो शायद काफी पहर पहले से ही इस सवेरे के इंतज़ार में  है ,वह सवेरा जो इन्हे फिर से लहलहाने का अवसर देता है  और  मग्न होकर झूंमने  का आनंद देता है ।
 इसीलिए शायद कहा गया है कि स्वर्ग है तो प्रकृति कि गोद में ।

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